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हीर - राँझा लव स्टोरी पार्ट- २



राँझा के सभी भाई  मिलकर जमीन की माप -करने वाले काजी के पास गये  और उसे रिश्वत देकर अच्छी जमीनों को आपस में बाट लिया। बंजर और बेकार जमीन राँझे के हिस्से में आई। यह सब देखकर राँझा के दुश्मनो के खुसी का तो ठिकाना ही नहीं रहा। 

अब वे समाज में घूम घूम कर कहने लगे अब राँझा को भाइयो ने जाल में अच्छा फासा है।
राँझा को वह अपमानित करते हुए कहते थे। यह आदमी खेत कैसे जोट सकता है जिसके सर पर बड़े बड़े बाल  हैं। 
लेकिन दिमाग में दही भरा है। ऐसे आदमी से कौन औरत शादी करेगी जो जिंदगी में कभी कुछ नहीं कर सकता। 

राँझा की  बेइज्जती करने में भाई  भी पीछे नहीं थे , वे कहते , उसने तो औरतो की तरह चुड़िया पहन रखी है। दिन भर बासुरी बजाता रहता है और रात भर गाना जाता रहता है। अगर वह जमीन को लेकर लड़ने आता है तो आने दो। देखते हैं की क्या कर लेता है हम सब के सामने वह अकेला टिक नहीं सकता। 

राँझा भरी दिल लिए अपने बैलो को लेकर खेत जोतने चला लेकिन उसकी आत्मा रो रही थी , और धोप की तलखी उसकेउसके दुःख को और बढ़ा रही थी खेत जोतते  हुए जब थक गया तो छाया में जाकर वह लेट गया गया और वह आराम करने लगा। 

उसकी भोजाई साहिबा उसके लिए खाना लेकर आई और  वह अपना दर्द उससे कहने लगा भौजी मुझे खेत जोतना अच्छा नहीं लग रहा। 
जमीन बहुत कठोर है मेरे हाथो में फफोले और पैरो में छाले पड़ गये हैं। पिता जी जिंदा थे तो कितने अच्छे दिन थे जाने वे कहा चले गए जो बुरे दिन मुझको देखने पड़  रहे है। 

साहिबा ताना  मारते हुए बोली ,वैसे तुम तो बस अपने पिता के ही दुलारे थे ,माँ के लिए तुम सर्मसार करने वाले बेटे थे। 

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