चेनाब नदी के किनारे एक खुबसूरत जगह है -तख्त हजारा। यहां बहने वाली नदियो की लहरे और बाग बगीचे की खुशबू की वजह से इसे पूरब का स्वर्ग कहा जाता है यही राँझाओ की धरती है जो मस्ती से यहाँ रहते है। इस बस्ती के नोजवाज बेपरहवाह किसम के है वे कानो में बालिया पहनते हैं और कंधे पर नया शाल रखते है। उनको अपनी खूबसूरती पर गर्व है।
इसी बस्ती का मुखिया था जमींदार मौजू चौधरी। वह आठ बेटे और दो बेटियों का बाप था। वह बहुत धनी और खुशहाल था गांव में सभी उसका सम्मान करते थे। सभी बेटो में वह राँझा को सबसे ज्यादा प्यार करते था। इसी कारन राँझा के भाई सभी उससे जलते है।
बाप के डर से वे राँझा पर सीधे वार नहीं कर पाते थे लेकीन पीछे ताना मारते रहते थे। जिससे राँझा के दिल को ऐसे चोट लगती थी जैसे सोये हुए आदमी को अँधेरे में साफ डंक मारता हो।
फिर एक अंधेरी रात ऐसी आई जब राँझा पर कयामत का कहर बरसा।
उस रात उसका बाप चल बसा। राँझा के भाइयो ने उसपर अब खुलेआम बार- बार ताना कसना शुरू कर दिया।
वे राँझा को कहते , आलसी बैठकर रोटी तोड़ता है और दो आदमी के बराबर दूध पि जाता हैं। वो भी मखन मार के।
भाइयो ने राझा से छुटकारा पाने के लिए षड्यंत करना शुरू कर दिया और एक योजना बनाई।
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